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हिंदी का बढ़ता स्वरूप

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आज के दौर में हिंदी हमारी मातृभाषा न होकर ऑनलाइन भाषा बनती जा रही है। चाहे इंटरनेट पर बात करनी हो या मोबाइल पर चैट करना हो, आजकल सारे काम लोग हिंदी में ही करना पसंद कर रहे हैं। भले ही इस भाषा की वर्तनी रोमन हो गई है, लेकिन भाषा तो हमारी हिंदी ही है। इतना ही नहीं, रही सही कसर रेडियो एफएम चैनलों की हिन्दी ने पूरी कर दी है। आज के तेज जमाने में, तेज रफ्तार से दौड़ती हुई फर्राटेदार मनोरंजक एमएम चैनलों की भाषा भी हिंदी-इंग्लिश मिक्स हो चुकी है,जिसमें चुटकुले मजाक,गंभीर बातें और संगीत बजता रहता है। आजकल जनसंचार का माध्यम भी अंग्रेजी को पीछे छोड़ता हुआ हिंदी के साथ आगे बढ़ रहा है। इतिहास में इतने विकट, व्यापक एवं विविध स्तर के संचार की भाषा हिन्दी कभी नहीं बनी, वह साहित्यिक हिन्दी रहकर संदेश, उपदेश और सुधार की भाषा भर जरूर बनी रही। प्रिंट मीडिया ने हिंदी को एक अलग विस्तार तो दिया, लेकिन साक्षरों के बीच ही। जबकि रेडियो, फिल्मों और टीवी ने उसे वहाँ पहुँचाया, जहाँ हिन्दी का निरक्षर समाज रहता है, यहां हिंदी को एक नई भाषा का नाम दिया गया, जो कि म्युजिकल भाषा है।

हिन्दी आज टीवी के समाचारों से लेकर मनोरंजन की सबसे बड़ी भाषा बन चुकी है।इतना ही नहीं,हिंदी जितना ज्यादा बोली जाने वाली भाषा दूसरी कोई नहीं है। इसका कारण हिन्दी का अपना लचीला स्वभाव है, उसमें दूसरी भाषाओं को समा लेने की अद्भुत क्षमता है।आज हिंदी कोश में मराठी, गुजराती, पंजाबी, उर्दू, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम तक के शब्द मिक्स होकर आते-जाते हैं। वहीं रीमिक्स की भाषा बनकर इसने सिद्ध कर दिया है कि स्पानी या लेटिनी या अँगरेजी भाषा के साथ उसकी कोई समस्या नहीं है,हिंदी इसके संग-संग चल सकती हैं।

इतने पर ही हिन्दी का सफर नहीं रूका, इसने ब्लॉगिंग के क्षेत्र में जिस तेजी से लोकप्रियता हासिल की है, वो हर किसी के लिए हैरानी वाली बात है। जबकि देश में हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है, फिर भी कुछ ही वर्षों में हजारों लोग हिन्दी ब्लॉग लेखन से जुड़ गए हैं और उन्हें पढ़ने वालों की संख्या तो लाखों में पहुँच गई है। अभिव्यक्ति को त्वरित व्यक्त करने का अवसर और कम खर्चीली स्वतंत्रता जैसा एक ब्लॉग दे सकता है,वह किसी अन्य माध्यम में उपलब्ध नहीं है। जो भी कहना है खुल कर कहो…वो बस एक क्लिक पर।
दूरसंचार के क्षेत्र में जिस तरह की क्रांति मोबाइल के आने से हुई, ठीक उसी तरह की क्रांति इंटरनेट की दुनिया में ब्लॉग, यानी इंटरनेट पर ब्लॉग के आने से हुई और यह जल्द लोकप्रिय भी हो गया। इसकी सफलता में इंटरनेट ने बहुत अहम् किरदार निभाया, ब्लॉगों की शुरूआत से पहले आम आदमी, जो इंटरनेट पर पहले केवल एक दर्शक था, वह जल्द ही लेखक बन गया।
ब्लॉगिंग ने आम आदमी को दर्शक से लेखक बनाकर उसके हाथ में ऐसा हथियार दिया, जिससे वह दुनिया के किसी भी कोने में पलक झपकते पहुँच सकता था और ये सब हो पाया हमारी मातृभाषा हिंदी के कारण, क्योंकि इस पर हम अपनी भाषा का उपयोग करते हुए सारे काम कर सकते हैं। इसने उन लोगों को भी जोड़ा जिनकी इंटरनेट में कोई रुचि नहीं थी।

शुरूआत में तो यह लेखन का शौक रखने वालों में लोकप्रिय हुई। लेकिन जैसे-जैसे लोगों को खूबियों का पता चला, वैसे-वैसे इसके उपयोगकर्ता भी बढ़ते गए। आज लोग हर उस विषय पर ब्लॉगिंग कर रहे हैं जिसकी हम कल्पना कर सकते हैं। हिन्दीभाषी किसी मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त करने,भड़ास निकालने, दैनिक डायरी लिखने, खेती-किसानी की बात करने से लेकर तमाम तरह के विषयों पर लिख रहे हैं। अपनी इसी खूबी के कारण ब्लॉग को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का माध्यम कहा जाने लगा है क्योंकि यहाँ पर आप कुछ भी और कितना भी लिखिए, कोई रोकने वाला नहीं है।

ब्लॉगर,वर्डप्रेस,मायस्पेस और माय वेबदुनिया जैसी कई प्रमुख साइटों पर न केवल हिंदी में ब्लॉगिंग किया जा सकता हैं बल्कि इन पर सारे टूल्स भी हिन्दी में उपलब्ध हैं जो एक बेहतरीन ब्लॉग बनाने में मदद करते हैं,चाहे कंप्यूटर का अधिक नॉलेज हमें न हो तब भी। आज तो ब्लॉगिंग केवल एक शौक या अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं रहा बल्कि ब्लॉगर अपने ब्लॉग की लोकप्रियता के अनुसार लाखों रुपए हर महीने कमा रहे हैं। कंपनियाँ अपने उत्पादों का प्रचार करने के लिए ब्लॉगरों की मदद लेती हैं और विज्ञापन देने वाली कंपनियाँ विज्ञापन पोस्ट करने के लिए।

आज भारत में हिन्दी की व्याप्ति कितनी है इसका पता इसी बात से चल जाता है कि दक्षिणी प्रदेशों में जैसे केरल में हिन्दी को दूसरी भाषा की मान-सम्मान मिलता हैं। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक में भी कन्नड़ के साथ हिन्दी मौजूद है। तमिलनाडु तक में अब हिन्दी का वैसा विरोध नहीं है जैसा कि सातवें दशक में हुआ था। अब तो तमिल सांसद हिन्दी सीखने की बात करने लगे हैं।

मीडिया की भी मुख्य भाषा हिन्दी है। आज हिन्दी मीडिया अँगरेजी मीडिया से कहीं आगे है। नए राष्ट्रीय पाठक सर्वेक्षण में पहले पाँच सबसे ज्यादा बिकने वाले अखबार हिन्दी के हैं। एक अँगरेजी का है, एक मलयालम का है, एक मराठी का और एक तेलुगु का है। एक बंगला का भी है। हिन्दी के सकल मीडिया की रीच, इन तमाम भाषाई मीडिया से कई गुनी ज्यादा है। हिन्दी की स्वीकृति अब सर्वत्र है। ऐसा हिन्दी दिवसों के जरिए नहीं हुआ, न हिन्दी को राजभाषा घोषित करने से हुआ है। ऐसा इसलिए हुआ है कि हिन्दी जनता और मीडिया का नया रिश्ता बना है। यह बाजार ने बनाया है जिसे हिन्दी के विद्वान कोसते नहीं थकते।
साहित्य मानता है कोई भी भाषा जनसंचार की भाषा बने बिना आगे नहीं बढ़ती। वह जितना विविध संचार करने में क्षमतावान होगी उतनी ही बढ़ेगी। ऐसा ही हिंदी के साथ हो रहा है। हिन्दी इसीलिए आगे बढ़ी है और बढ़ रही है। इसके पीछे हिन्दी भाषी जनता की जरूरतों का बल है।

हिन्दी जनता सबसे बड़ी उपभोक्ता जमात है। इस बात को वॉलीबुड से लेकर विज्ञापन जगत तक अच्छे से जानते हैं। कॉर्पोरेट दुनिया विज्ञापन को पहले हिन्दी में पहले बनवाती है। यही हिन्दी की गुरुत्वाकर्षकता है।  वह कॉर्पोरेट के लिए आकर्षक और सबसे बड़ा बाजार देती है।  कंपनियाँ उसमें संवाद करती हैं। ब्रांड करती हैं। इससे एक विनियम की नई हिन्दी बनी है। साहित्य भी मरा नहीं है, वह छोटी पत्रिकाओं में रह रहा है। वही उसकी जगह भी थी।

इतना होने के बाद भी सभी कहते है कि हिंदी भाषा हमारी खतरे में हैं,जबकि इन बातों से भलीभांति साबित होता है कि हिंदी का स्वरूप पहले से ज्यादा सार्थक हो चुका है,ये विश्वव्यापी बनती जा रही है। आवश्यकता है तो बस दोष निकलने के बजाय इस भाषा के साथ चलने की, जिससे यह पूरे विश्व में यह हमारे देश का नाम रोशन करता रहे।

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